Monday, 17 August 2020

शहर - जो सिगरेट के कश अंदर लेता है, और पॉलिटिक्स बाहर छोड़ता है!

कलकत्ता - क्या नहीं था इस शहर के पास ! बंदरगाह, पास में ही खनिजों का भंडार, मैदानी क्षेत्रों से जुड़ी हुई रेल, दामोदर वैली का पानी, सी..एस.सी. का बेहतरीन बिजली नेटवर्क, चाय बागानों से निकटता!!!

पूर्व मुख्यमंत्री - श्री ज्योति बसु: पश्चिम बंगाल
 भूत पूर्व मुख्यमंत्री - स्वर्गीय श्री ज्योति बसु पश्चिम बंगाल 
रोचक प्रसंग है - १९६५ में सिंगापुर के प्रथम प्रधानमंत्री ली कुवान यू ने कहा था "मैं सिंगापुर को कलकत्ते की तरह बनाना चाहता हूं" | इन्हीं ली साहब ने २००७ में अपने पुत्र (जो उस वक़्त सिंगापुर के प्रधानमंत्री थे) से कहा था - "थोड़ी लापरवाही, और सिंगापुर को कलकत्ता बनने में देर नहीं लगेगी, बेटे. बहुत सजग रहने की जरूरत है" |
कलकत्ता - क्या नहीं था इस शहर के पास ! बंदरगाह, पास में ही खनिजों का भंडार, मैदानी क्षेत्रों से जुड़ी हुई रेल, दामोदर वैली का पानी, सी..एस.सी. का बेहतरीन बिजली नेटवर्क, चाय बागानों से निकटता !!
1950 में कोलकाता की कुल आबादी थी 45 लाख, उस वक़्त मुंबई और दिल्ली की आबादी क्रमश 26 लाख और 14 लाख थी | 2011 में कोलकाता की कुल आबादी रही 1.40 करोड़ वहीं मुंबई और दिल्ली की 1.90 करोड़ और 1.65 करोड़. और यह तब है, जबकि कोलकाता में अन्य महानगरों के मुकाबले शरणार्थियों की संख्या काफी अधिक थी | स्पष्ट है कि कलकत्ता, महानगरों की रेस में बहुत ही पीछे छूट गया |
कभी कभी लगता है जैसे इस शहर के साथ बेईमानी हो गई. कोई बड़ा छल किया गयाएक पान बीड़ी की दुकान भी कोई लगाना चाहता था तो पहुंच जाते थे कॉमरेड लोग हाथ में रसीद ले कर - "कितने की पर्ची काटें?" 
बालीगंज - बड़ा बाज़ार के मारवाड़ी उद्योगपतियों को ब्लैकमेल करना शुरू किया जाने लगा. चंदा दो नहीं तो हड़ताल! ऊपर से एक से बढ़कर एक बेईमान छुटभैयए; लाल सलाम बोल के लाल लाल नोट हथियाने वाले!
ऐसा नहीं था कि कम्युनिस्ट राज में सिर्फ निजी क्षेत्र ही बर्बाद हो रहा था, रूस की देखा देखी कम से कम सरकारी उद्यमों का तो ख्याल रखना चाहिए था - ज्योति बसु ने उस ओर भी शून्य पहल की. जहां कम्युनिस्ट शासित केरल ने लगभग १०० राज्य पब्लिक सेक्टर खड़े किए (नुकसान - मुनाफा एक अलग बहस है, कम से कम विचारधारा के अनुरूप कुछ किया तो) वहीं इतने लंबे कम्युनिस्ट शासन के बाद भी बंगाल ने कोई नए पब्लिक सेक्टर नहीं खड़े किए |
मार्क्स के कम्युनिज्म का आधार में मुख्य अंश ही अर्थव्यवस्था है - और इन कम्युनिस्ट राजा ने उसी आधार को गायब कर दिया |
नासमझ लोग इसी में खुश थे कि पार्क स्ट्रीट में जो मिष्टी दही का कुल्हड़ १९८० में रुपए का था वो वर्ष २००० में भी रुपए का मिल रहा है; मगर समझदार लोग समझ चुके थे कि तरक्की रुक चुकी है इस शहर की. आर्थिक रूप से जड़ हो चुका है यह शहर - इसलिए " रेवोल्यूशन " का मोह छोड़ो और पलायन करो |
धीरे धीरे उद्योगपतियों, विद्यार्थियों, कलाकारों, कारीगरों - सबने पलायन शुरू कर दिया! जो एक बार कलकत्ते से निकल गए, रिटायरमेंट से पहले तो वापस लौट कर नहीं जाना चाहते |
अस्वीकरण - तृणमूल सरकार आने से उम्मीद की एक लहर दिखी थी. मगर ममता दीदी का तरीका भी वहीं है जो बसु दा का था - नस नस में पार्टी पॉलिटिक्स भर दो. किताब में पढ़ा था - हम ऑक्सीजन अंदर लेते हैं और कार्बन डाई ऑक्साइड बाहर छोड़ते हैं. हावड़ा स्टेशन से बाहर निकलते ऐसा महसूस होता है जैसे यह शहर सिगरेट के कश अंदर लेता है, और पॉलिटिक्स बाहर छोड़ता है!

No comments:

Post a Comment